क्यों है सोलह सोमवार के व्रत की इतनी मान्यता / 16 Somvar Vrat Katha Vidhi
सोलह सोमवार के व्रत रखने से मिलता है लड़कियों को मनपंसद वर, होती हैं हर मनोकामना पुरी।
सोलह सोमवार व्रत
सावन के सबसे लोकप्रिय व्रतों में से 16 सोमवार का व्रत है। लड़कियां इस व्रत से मनचाहा वर पा सकती हैं। वैसे यह व्रत हर उम्र और हर वर्ग का व्यक्ति कर सकता हैं लेकिन नियम की पाबंदी के चलते वही लोग इसे करें जो इन्हें पुरा करने की क्षमता रखते हैं। विवाहित इसेे करने से पहले ब्रह्मचर्य नियमों का पालन करना जरुरी हैं।
क्या है सोलह सोमवार की व्रत कथाः
कहते है कि एक बार पार्वती जी के साथ भगवान शिव सैर करते हुए धरती पर अमरावती नगरी में पधारें, वहां के राजा ने उनके रहने के लिए एक शानदार मंदिर बनवाया । उसी मंदिर में एक दिन शिव शंकर और पार्वती जी नेे चौसर का खेल शुरू किया तो उसी समय पुजारी पूजा करने को आए। माता पार्वती जी ने पुजारी से पुुछा कि बताओं पुजारी जी जीत किसकी होगी। पुुजारी नेे अपने नाथ भोले शंकर के प्रति श्रृदा भाव रख्ाते हुए नाम लिया, पर अंत में जीत पार्वती जी की हुई। इस पर पार्वती ने झूठी भविष्यवाणी के कारण पुजारी जी को कोढ़ी होने का दंड दे दिया और वह कोढ़ी हो गए। कुछ समय के बाद उसी मंदिर में स्वर्ग से अप्सराएं पूजा करने के लिए आईं तो पुजारी से कोढ़ी होने का कारण पूछा। पुजारी ने अापबीती बताई। तब अप्सराओं ने उन्हें 16 सोमवार के व्रत के बारे में बताते हुए और देवों के देव महादेव से अपने कष्ट हरने की प्रार्थना करने को कहा। पुजारी ने भी अन्न व जल ग्रहण किए बिना सोमवार को व्रत रखें ।
क्या बताई व्रत की विधिः
अप्सराओं ने बताया कि आधा सेर गेहूं के आटे का चूरमा तथा मिट्टी की तीन मूर्ति बनाए और चंदन, चावल, घी, गुड़, दीप, बेलपत्र आदि से शिव भोले बाबा की उपासना करें।उसके बाद में चूरमा भगवान शंकर जी को चढ़ाकर और फिर इस प्रसाद को 3 हिस्सों में बांटकर एक हिस्सा लोगों में बांटे, दूसरा गाए को खिलाएं और तीसरा हिस्सा स्वयं खाकर पानी पिएं। इस विधि से सोलह सोमवार करें और सत्रहवें सोमवार को पांच सेर गेहूं के आटे की बाटी का चूरमा बनाकर भोग लगाकर बांट दें। फिर परिवार के साथ प्रसाद ग्रहण करें। ऐसा करने से भोलेनाथ सबके मनोरथ पूर्ण करेंगे।
सोलह सोमवार व्रत के विशेष नियम है। 16 बातें जो हर किसी को जानना जरूरी.
- सुबह पहले उठकर पानी में कुछ काले तिल डालकर नहाना चाहिए।
- इस दिन सूर्य को हल्दी मिश्रित जल जरूर चढ़ाएं।
- अब भगवान शिव की उपासना करें। तांबे के पात्र में शिवलिंग रखें।
- भगवान शिव का अभिषेक जल या गंगाजल से होता है, मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए दूध, दही, घी, शहद, चने की दाल, सरसों तेल, काले तिल, आदि कई सामग्रियों से अभिषेक की विधि प्रचलित है।
- इसके बाद 'ॐ नमः शिवाय' मंत्र के द्वारा श्वेत फूल, सफेद चंदन, चावल, पंचामृत, सुपारी, फल और गंगाजल या स्वच्छ पानी से भगवान शिव और पार्वती का पूजन करना चाहिए।
- अभिषेक के दौरान पूजन विधि के साथ-साथ मंत्रों का जाप भी बेहद आवश्यक माना गया है। महामृत्युंजय मंत्र, भगवान शिव का पंचाक्षरी मंत्र या अन्य मंत्र, स्तोत्र जो कंठस्थ हो।
- शिव-पार्वती की पूजा के बाद सोमवार की व्रत कथा करें।
- आरती करने के बाद भोग लगाएं और प्रशाद को परिवार में बांटने के बाद स्वयं ग्रहण करें।
- नमक के बिना बना प्रसाद ग्रहण करें।
- दिन में भूलकर भी न सोएं ।
- हर सोमवार को पूजा का समय निश्चित करें।
- हर सोमवार एक ही समय एक ही प्रसाद ग्रहण करें।
- प्रसाद में गंगाजल, तुलसी, लौंग, चूरमा, खीर और लड्डू में से अपनी क्षमतानुसार किसी एक का चयन करें।
- 16 सोमवार तक जो खाए उसे एक स्थान पर बैठकर ग्रहण करें, चलते फिरते नहीं।
- हर सोमवार एक विवाहित जोड़े को उपहार दें। (फल, वस्त्र या मिठाई)
- 16 सोमवार तक प्रसाद और पूजन के जो नियम और समय निर्धारित करें उसकी मर्यादा का पालन करें।